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शिक्षक – महत्व एवं भूमिका

शिक्षक – महत्व एवं भूमिका
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एक अच्छे समाज का निर्माण अच्छे इंसानों से होता है। अच्छे इंसान अच्छी सोच से बनते है और अच्छी सोच केवल अच्छी शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। शिक्षा के इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु ज्ञान के जिस श्रोत की आवश्यकता परती है उस श्रोत का नाम शिक्षक है। शिक्षक शब्द का सामान्य अर्थ वह इंसान है जो शिक्षा प्रदान करते है।

महत्व एवं भूमिका: जिस प्रकार एक सक्षम वाहन चालक की अनुपस्थिति में वाहन अनियंत्रित एवं दिशाहीन हो जाता है ठीक उसी प्रकार शिक्षक के मार्गदर्शन की अनुपस्थिति में एक मनुष्य का जीवन भी अनियंत्रित एवं दिशाहीन हो जाता है। इस प्रकार के मनुष्यों का जीवन एक पता-रहित चिट्ठी की भांति कभी अपने मंजिल तक नहीं पहुच पाती है। शिक्षक विद्द्यार्थियों के जीवन को सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण कर उस उर्जा को एक निश्चित दिशा प्रदान करते हैं जिस दिशा में आगे बढ़ कर विद्द्यार्थियों को अपने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

यूं तो धरती पर अनगिनत प्रकार के जीव पाए जाते हैं परंतु वह एक मात्र गुण जो इंसानो को एन्य जीवो से श्रेष्ट बानाता है वह ज्ञान है। ज्ञान के बल पर ही पुरातन शास्त्रों से लेकर आज के आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण तक का यह सफर संभव हो पाया है। एवं इस ज्ञान के श्रोत शिक्षक ही हैं जो अपने ज्ञान के बल पर इस समाज को एक सकारात्मक सोच से परिपूर्ण कर उन्नति की ओर अग्रसर करते हैं।

शिक्षक की महत्ता को दर्शाते हुए महान संत कबीर दास जी ने भी लिखा है कि:

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

अर्थात गुरु (शिक्षक) एवं गोविन्द (भगवान) दोनों के दर्शन यदि हमें एक साथ प्राप्त होते हैं तो पहले हमें किनके चरण छूने चाहिए? संत कबीर दास जी कहते हैं की ऐसी परिस्थिती में पहले गुरु की चरण वंदना करनी चाहिए क्युकी वह गुरु ही हैं जिनके ज्ञान के माध्यम से आज हमें भगवान की महत्ता का ज्ञान हुआ है एवं उनके दर्शन का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है।

कई लोगों का मानना है कि गुरु की महत्ता एवं भूमिका केवल विद्यालयों तक ही सीमित होती है परंतु यह बिलकुल भी सत्य नहीं है क्युकी गुरु का ज्ञान भले ही विद्यालयों में प्राप्त होता हो परंतु उस ज्ञान का इस्तेमाल केवल विद्यालयों तक सीमित नहीं है अपितु उस ज्ञान की आवश्यकता हमें हर जगह एवं अपने जीवन के अंत काल तक परती है। अतः गुरु की महत्ता एवं आवश्यकता पुरे विश्व में फैली हुई है।

निष्कर्ष: निम्न लिखित पंतियो से यह स्पष्ट है कि मानव जीवन का आधार ज्ञान है और इस ज्ञान के सर्वश्रेठ श्रोत गुरु हैं। शिक्षक के मार्गदर्शन के अभाव में एक सफल जीवन की कल्पना अत्यंत ही कठिन है। अतः गुरु का आदर अवं सम्मान प्रत्येक मनुष्य के लिए अनिवार्य है।

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