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मनुष्य – पृथ्वी के सबसे उन्नत जीव या पृथ्वी के लिए खतरा

मनुष्य – पृथ्वी के सबसे उन्नत जीव या पृथ्वी के लिए खतरा
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हमारी पृथ्वी का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, उसमे मानव जाती का अस्तित्व स्वर्णिम अक्षरो में लिखा होगा क्युकी उस इतिहास के रचनाकार भी स्वयं मनुष्य ही होंगे। मनुष्य को धरती का सबसे श्रेष्ठ जीव माना जाता है परन्तु हैरानी की बात यह है की इंसान को श्रेष्ठता का यह ताज पहनाने वाले भी स्वयं मनुष्य ही हैं। अर्थात आज धरती पर इंसानों की जो भी भूमिका, महत्व एवं वरिष्ठता है वह स्वयं इंसानों द्वारा ही निर्धारित की हुई है  अतः इनपे एकपक्षीय विश्वास करना हमारी पृथ्वी के साथ अन्याय होगा।

पृथ्वी का दृष्टिकोण:

यदि हम पृथ्वी के दृष्टिकोण से देखे तो आज से कई लाख साल पहले जब इंसानों की उत्पत्ति इस धरती पर नहीं हुई थी तब हमारी यह धरती कई ज्यादा खुशहाल एवं हरी-भरी थी। प्राकृतिक वातावरण आज की तुलना में कई गुणा ज्यादा बेहतर थे एवं प्रदुषण और रोग आज की तुलना में ना के बराबर थे। हालांकि आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण इस धरती पर उस वक़्त मौजूद नहीं थे परंतु ये आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण मानव के आवश्यकताओं की चीजे है पृथ्वी एवं उनके अन्य जीवो की नहीं। आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण ने पृथ्वी के प्राकृतिक परिवेश का तेजी से विनाश किया है जिसकी वजह से आज धरती का प्राकृतिक संतुलन बिगर गया है और ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, हिमनद की कमी, सूखा इत्यादि जैसी समस्याएं आम हो चुकी है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

वैज्ञानिको की माने तो कुछ वैज्ञानिक यहाँ तक कहते है की इन्सान इस धरती के है ही नहीं। उनका मानना है की इंसानों के पूर्वज किसी और ग्रह से यहाँ पृथ्वी पर आ कर बस गये थे। उन वैज्ञानियो के इतने बरे कथन के पीछे का तर्क यह है की इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक छोटे से छोटा एवं बरे से बरा जीव का इस धरती के पारिस्थितिकी तंत्र (इकोतंत्र) में कुछ न कुछ भूमिका अदा करता है, उदहारण के तौर पर यदि इस दुनिया से मधुमक्खियाँ समाप्त हो जाएं तो उसके कुछ ही साल बाद भोजन की अनुपस्थिति में जीवन का अस्तित्व भी इस दुनिया से समाप्त हो जाएगा क्युकी मधुमक्खियाँ परागन में सहायता करती हैं। यहाँ तक की अत्यंत सूक्ष्म जीव, जिन्हें खुली आँखों से देखा भी नहीं जा सकता, वो भी पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र (इकोतंत्र) में अहम् भूमिका निभते हैं। मनुष्य ही एक मात्र ऐसे जीव है जिसके समाप्त हो जाने पर पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र पर कोई प्रभाव नहीं परेगा बल्कि आगे चलकर यह पृथ्वी और भी सुन्दर एवं हरी-भरी हो जाएगी।

निष्कर्ष:  

इन समस्त तथ्यों से यह बात स्पष्ट है की मनुष्य की मौजूदगी से यह पृथ्वी एवं इसके सभी जीव छतिग्रस्त हो रहे है। इनके द्वारा लाए गये कृतिम बदलाव पृथ्वी के प्राकृतिक परिवेस को तेजी से छतिग्रस्त कर रहे है। अतः मनुष्य अपने खुद की नजरो में तो इस पृथ्वी का सबसे श्रेष्ठ जीव हो सकते है परंतु इस पृथ्वी एवं इनपे मौजूद अन्य जीवो के लिए ये केवल एक खतरा बन कर रह गये हैं।

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